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Thursday, 16 April 2020

Covid 19 Times

वो भी दिन थे जब मैं सुबह उठते ही किसी नए शहर की गलियों में छोटा सा कैफे ढूंढती और फिर किसी कोने में जाकर या तो कोई किताब उठाती या फिर टिश्यू पेपर पर अपनी क़लम से कुछ दिल की बातों का बयाँ कर देती।
आजकल समॉं कुछ और ही है, एक महीना होने वाला है मैं हम सबकी तरह घर पर ही हूँ। समय की क़द्र बढ़ रही है और रिश्तों की परीक्षा हो रही है। सुबह का संगीत अब चिड़ियों का चहचहाना है इतना सुकून है सड़कों पर कि शहर में ही नदी के किनारे वाला एहसास है।
फल, सब्ज़ी और राशन की असली क़द्र हो रही है, जब पता चलता है सुपर मार्केट ख़ाली हो रहीं है और जब रवीश कुमार को NDTV पर रात 9 बजे सुनते हैं भुखमरी करोना से ख़तरनाक लगने लगती है।

रोंगटे खड़े होते हैं लोगों का विश्वास टूटते हुए देखकर पर फिर कुछ डॉक्टर नर्स सफाईकर्मी इनके जज़्बे की कहानी सुनकर एक शिक्षक के तौर पर बहुत कुछ सीखने को मिलता है कि जब तक यह जान है अपने कर्म करते जाना है। 


2 comments:

Dr Y Satguru Roshan said...

Radhasoami ma'am... Good lines.. ��

Unknown said...

Wow such a fantastic thought...you are appreciable always.